भागलपुर
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*नगर निकाय चुनाव में पिछड़ा आरक्षण रद्द किए जाने के खिलाफ भाकपा-माले ने निकाला प्रतिवाद मार्च*
*नगर निकाय चुनाव में पिछड़ों का आरक्षण हुआ भाजपाई साजिश का शिकार : भाकपा-माले*
8 अक्टूबर 2022, भागलपुर
नगर निकाय चुनाव में पिछड़ों के आरक्षण में व्यवधान पैदा करने वाली भाजपाई साजिश के खिलाफ आज भाकपा-माले ने राज्यव्यापी विरोध दिवस मनाया। भागलपुर में स्थानीय घंटाघर चौक से प्रतिवाद मार्च निकाला गया। आरक्षण विरोधी भाजपाइयों शर्म करो – अतिपिछड़ों से प्रेम का नाटक बन्द करो, आरक्षण को खत्म करने की भाजपाई साजिश का भंडाफोड़ करो, न्यायालय - न्यायालय का खेल बन्द करो – निकाय चुनाव सहित हर क्षेत्र में आरक्षण लागू करो, आरक्षण पर हमला नहीं सहेंगे – आदि नारों को बुलंद करते हुए मार्च बड़ी पोस्टऑफिस के रास्ते कलेक्ट्रेट गेट पहुंच जोरदार प्रदर्शन किया।
प्रतिवाद मार्च का नेतृत्व भाकपा-माले के राज्य कमिटी सदस्य कॉमरेड एस के शर्मा, जिला सचिव कॉमरेड बिंदेश्वरी मंडल और नगर प्रभारी व ऐक्टू राज्य सचिव कॉमरेड मुकेश मुक्त ने की।
नेतृत्वकारी कॉमरेडों ने सभा को सम्बोधित करते हुए आरोप लगाया कि नगर निकाय चुनाव में पिछड़ों का आरक्षण भाजपाई साजिश का शिकार हुआ है। कॉमरेडों ने कहा कि पिछड़ी/अतिपिछड़ी जातियों का पिछड़ापन कोई अबूझ पहेली नहीं है। इसकी जरूरत दिन के उजाले की तरह साफ है। शिक्षा और नौकरी में आरक्षण के साथ पंचायतों/नगर निकायों सहित अन्य राजनीतिक संदर्भों में पिछड़ों/अतिपिछड़ों को आरक्षण उनके ऐतिहासिक पिछड़ेपन को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
कॉमरेडों ने कहा कि बिहार में जातीय जनगणना होने वाली है। जनगणना के बिंदुओं को और व्यापक बनाने का निर्देश भी हाई कोर्ट दे सकता था जिससे कि पिछड़ों के आरक्षण के ट्रिपल टेस्ट की शर्तें भी पूरी हो जातीं। चुनाव अंतिम चरण में था। आर्थिक संकट के इस गंभीर दौर में सरकार और जनता के करोड़ों रुपए खर्च हो चुके थे। इसे रोकना न सिर्फ एक भारी आर्थिक क्षति है, बल्कि स्थानीय स्तर पर कार्यरत लोकतांत्रिक प्रणाली को भी बाधित करना है। फिर, 2007 में नगर निकाय चुनाव के नियम बनने के बाद 3 बार चुनाव हो चुके हैं और पिछड़ों को आरक्षण भी दिया जा चुका है। राज्य सरकार का कहना है कि 2007 में कानून बनने पर सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे सही कहा था। इसलिए सुप्रीम कोर्ट का 2010 का फैसला इसपर लगुनहीं होता। लेकिन हाई कोर्ट ने कुछ नहीं सोचा और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के नाम पर बहुत ही अव्यावहारिक, अविवेकपूर्ण, दुर्भाग्यपूर्ण और पिछड़ा विरोधी फैसला लिया। नतीजा सामने है। निकाय चुनाव को ही कोर्ट के पचड़े में डाल दिया गया है। यह और कुछ नहीं, संघ–भाजपा की आरक्षण विरोधी गहरी साजिश का हिस्सा है। विगत दिनों हमने देखा है कि सुप्रीम कोर्ट तक इस भाजपाई साजिश की चपेट में आता रहा है।
कॉमरेडों ने आगे कहा कि पिछड़ों के आरक्षण के पक्ष में भाजपा घड़ियाली आंसू बहा रही है और नीतीश सरकार को ट्रिपल टेस्ट की अवहेलना के लिए कोस रही है। यहां तक कि उसने इसके लिए नीतीश सरकार के खिलाफ आंदोलन भी किया है। इसे कहते हैं – चोर बोले जोर से! महज थोड़े समय को छोड़ दिया जाए तो विगत तीनों निकाय चुनाव – 2007, 2012 और 2017 के समय भाजपा के पास ही नगर विकास मंत्रालय रहा है। 2010 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद भी दो चुनाव हुए हैं, लेकिन न तो भाजपा का ज्ञान खुला और न ही उसमें पिछड़ा प्रेम जागा! वर्तमान चुनाव की प्रक्रिया भी भाजपा–जदयू सरकार के कार्यकाल में ही शुरू हुई थी। दरअसल, सत्ता खोने से बौखलाई भाजपा बिहार के सामाजिक–राजनीतिक जीवन में हर हाल में खलल डालने और व्यवधान पैदा करने में लगी है और ऊपर से पिछड़ा प्रेम का ढोंग भी कर रही है। भागलपुर सहित पूरे बिहार में भाकपा-माले इसके खिलाफ भंडाफोड़ अभियान चलाएगी।
प्रतिवाद मार्च में भाकपा-माले के राज्य कमिटी सदस्य एस के शर्मा, जिला सचिव बिंदेश्वरी मंडल और नगर प्रभारी व ऐक्टू राज्य सचिव मुकेश मुक्त, नगर सचिव विष्णु कुमार मंडल, पूर्व नगर सचिव सुरेश प्रसाद साह, जिला कमिटी सदस्य रेणु देवी, सिकंदर तांती व अशुतोष यादव, खरीक प्रखंड सचिव सुशील कुमार भारती, अमर कुमार, बिहारी शर्मा, सिकंदर यादव, ब्रजेश शर्मा, अमीर राय, श्यामलाल मंडल, मोहन यादव, सत्यनारायण यादव, प्रवीण कुमार, दीपक कुमार, अमरेश कुमार आदि प्रमुख रुप से शामिल हुए।