भागलपुर बिहार
शैलेन्द्र कुमार गुप्ता
पूरनमल बाजोरिया शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय, नरगाकोठी, चंपानगर, भागलपुर में 25 सितम्बर, 2023 दिन सोमवार को पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का जयंती समारोह आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्रभारी प्राचार्य श्री राजकुमार ठाकुर एवं संचालन डा. शैलेश मिश्र ने किया। इस अवसर पर महाविद्यालय के वरिष्ठ प्राध्यापक डा. गौरीशंकर मिश्र जी ने पं. दीनदयाल उपाध्याय जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। श्री राजीव शुक्ल ने आज के समय में उनके विचारों की प्रासंगिकता से श्रोताओं को अवगत कराया। कार्यक्रम में प्राध्यापक श्री मानवेंद्र आलोक ने दीनदयाल जी के विचारों से सबको अवगत कराया। महाविद्यालय के छात्राध्यापक भैया जयप्रीत एवं राजेश जी ने अपने विचार रखा। इस अवसर पर श्री हरेन्द्र नाथ पांडे, डा. अजीत कुमार दुबे, डा. सूची झा, सुश्री अदिति कारवा, माधव कृष्ण, सुश्री पूजा एवं रेमन, प्रशान्त आनन्द, नीरज, शिव चण्डिका भट्ट आदि उपस्थित रहे। आभार प्रदर्शन डा. रौशन सिन्हा ने किया। वक्ताओं ने कहा कि दीनदयाल उपाध्याय जी एक महान विचारक और एक महान राजनेता थे। इसके साथ ही साथ वे एक समाज सुधारक और महान शुभ चिंतक भी थे और भारतीय संगठन पार्टी को बनाने में इनका बहुत बड़ा योगदान रहा। पंडित दीनदयाल
उपाध्याय जी ने कालेज के दिनों में ही राजनीति में आने का निर्णय ले लिय था और उन्होंने बहुत ही कम समय में बहुत सारी उपलब्धियां हासिल कर ली थीं। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने अपने कार्यों एवं विचारों से लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया। उन्होंने छोटी सी उम्र में ही बहुत से संकटों को सामना किया. इससे वे दीनदयाल समाज के लिए एक मिसाल बने।
डा. शैलेश मिश्र ने कहा कि दीनदयालजी का पूरा नाम पंडित दीनदयाल उपाध्याय है, लोग उन्हें दीना नाम से भी पुकारते थे। उनका जन्म 25 सितम्बर 1916 को नगला चंद्रभान गाँव उत्तर प्रदेश में हुआ, उनके पिता का नाम श्री भगवती प्रसाद उपाध्याय व माता का नाम रामप्यारी और भाई का नाम शिवदयाल था। उनका जीवन संघर्ष भरा रहा। दीनदयालजी के पिता रेलवे में जलेसर में स्टेशन मास्टर थे और उनकी माता धार्मिक रीति रिवाजों को मानने वाली महिला थीं।
दीनदयालजी का पारिवारिक जीवन ख़ुशी-ख़ुशी चल रहा थी कि इसी बीच सन 1918 में उनके पिता की मृत्यु हो गई। जब दीनदयालजी की उम्र सिर्फ ढाई साल की थी। ऐसी स्थिति में उनके नानाजी ने उनके परिवार को संभाला व पालन-पोषण किया। इसी बीच उनकी माता भी बीमार रहने लगी और उनका स्वर्गवास हो गया जिससे वे दोनों अनाथ हो गये, किन्तु दोनों का भरण पोषण ननिहाल में बेहतर तरीके से होने लगा। जब वे केवल 10 वर्ष के थे तब उनके नाना का भी देहांत हो गया।
इस तरह से दीनदयालजी ने बहुत छोटी सी उम्र में अपने पूरे परिवार को खो दिया। अब उनको अपने भाई शिवदयाल का ही एक मात्र सहारा बचा था। अब दोनों अपने मामाजी के साथ रहने लगे। दीनदयालजी अपने भाई से बहुत प्यार करते थे। उन्होंने अपने भाई को एक अभिभावक के रूप में देखा, किन्तु उनके भाई को छोटी सी उम्र में एक गम्भीर बीमारी ने घेर लिया जिसके चलते 18 नबम्बर सन 1934 में उनके भाई की मृत्यु हो गयी। इसके बाद वे अपने आपको असहाय व कमजोर महशूस करने लगे। अब उनके साथ उनके परिवार का कोई भी व्यक्ति नहीं बचा था। फिर भी दीनदयालजी ने अपनी जिन्दगी से हार नहीं मानी और उन्होंने प्रण लिया कि वह अपनी आगे की पढाई पूरी करेंगे।
पंडित दीनदयालजी का निधन आचानक हो गया था। किसी ने इस महान नेता की मृत्यु के बारे में कल्पना भी नहीं की होगी। इस वक्त उनकी मृत्यु हुई थी उस वक्त वे महज 51 साल के थे। दीनदयालजी की मृत्यु सन 11 फरवरी 1968 को हुई थी। जब ये अपनी पार्टी से जुड़े कार्य के लिए लखनऊ से पटना की ओर जा रहे थे इसी दौरान इनकी हत्या कर दी गयी थी। इनका शव दूसरे दिन में मुगलसराय रेलवे स्टेशन के पास मिला था। तब किसी को भी पता नहीं था कि ये दीनदयाल उपाध्याय जी हैं। इनके शव की पहचान काफी समय के बाद की गयी थी, पर इनकी हत्या किसने की इसका पता नहीं चल पाया था। उन्ही के नाम पर मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन कर दिया गया।


























