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 बिहार में मानसिक स्वास्थ्य व्यवस्था व चिकित्सा सुविधाओं पर हाईकोर्ट ने जताई नाराजगी, अभी तक की कार्रवाई का स्वास्थ्य विभाग से मांगा ब्यौरा

पटना. हाइकोर्ट ने बिहार राज्य में मानसिक स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाओं से सम्बंधित मामले पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार द्वारा की गई कार्रवाई पर नाराजगी जाहिर की। चीफ जस्टिस संजय क़रोल की खंडपीठ ने आकांक्षा मालवीय की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को अब तक की गई कार्रवाई का ब्यौरा देने के लिए 12 दिसंबर 2022 तक की मोहलत दी है।कोर्ट ने आकांक्षा मालवीय की जनहित याचिका पर सुनवाई की। याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने कोर्ट को बताया कि कोर्ट ने जो भी आदेश दिया, उस पर राज्य सरकार के द्वारा कोई प्रभावी और ठोस कार्रवाई अब तक नहीं की गयी है। कोर्ट ने पिछली सुनवाई में इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता को पूरी जानकारी देने को कहा था। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को राज्य में मानसिक स्वास्थ्य सेवा में क्या-क्या कमियों के सम्बन्ध में ब्यौरा देने को कहा था।साथ ही कोर्ट ने इसमें सुधारने के उपाय पर सलाह देने को कहा। याचिकाकर्ता की अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने बताया कि नेशनल मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम ही के अंतर्गत राज्य के 38 जिलों में डिस्ट्रिक्ट मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम चल रहा है। लेकिन इसमें स्टाफ की संख्या नाकाफी ही है। हर जिले में सात-सात स्टाफ होने चाहिए। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार का दायित्व है कि वह मेन्टल हेल्थ केयर एक्ट के तहत  कानून बनाए। साथ ही इसके लिए मूलभूत सुविधाएं और फंड उपलब्ध कराए। लेकिन अबतक कोई ठोस और प्रभावी कदम नहीं उठाया गया है।कोर्ट को ये भी बताया गया था कि सेन्टर ऑफ एक्सलेंस  के तहत हर राज्य में मानसिक रोग के अध्ययन और इलाज के लिए कॉलेज है। लेकिन बिहार ही एक ऐसा राज्य हैं, जहां मानसिक रोग के अध्ययन और इलाज के लिए कोई कालेज नहीं है, जबकि प्रावधानों के तहत राज्य सरकार का ये दायित्व हैं। पिछली सुनवाई में कोर्ट को बताया गया था कि केंद्र सरकार की ओर से दिए जाने वाले फंड में कमी आयी है, क्योंकि फंड का राज्य द्वारा पूरा उपयोग नहीं हो रहा था।


पहले की सुनवाई में याचिकाकर्ता की अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने कोर्ट को बताया कि बिहार की आबादी लगभग बारह करोड़ हैं। उसकी तुलना में राज्य में मानसिक स्वास्थ्य के लिए बुनियादी सुविधाएं नहीं के बराबर है। इस मामलें पर अगली सुनवाई 12 दिसंबर,2022 को होगी।


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