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जा की आकृति में झलकती है... मालवा की मासूमियत...
प्रत्येक वर्ष की तरह ही इस वर्ष भी मालवमंथन एवं सेवा भारती, निवेदिता प्रकल्प इंदौर के संयुक्त तत्वावधान में मालवा के लोकपर्व संजा संध्या का आयोजन आदित्य कॉन्वेंट स्कूल ग्राम पालाखेड़ी इंदौर में आयोजित किया गया जहाँ बच्चीयों द्वारा पारंपरिक संजा के साथ जन जागृति का संदेश भी संजा की आकृति के माध्यम से दिया गया एवं संजा के पारंपरिक गीत गा कर पूजन किया गया। कार्यक्रम के अतिथियों में वरिष्ठ पर्यावरणविद डॉ.ओ.पी जोशी एवं सामाजिक कार्यकर्ता
श्रीमती माला ठाकुर एवं अनिल जी परिहार थे वही कार्यक्रम के सयोजक स्वप्निल व्यास ने बताया संजा अर्थात संझा, यह मालवा की लोक संस्कृति है। इसमें मां पार्वती की पूजा की जाती है। कहा जाता है मालवा पार्वतीजी का पीहर है। वे 15 दिन पीहर में रहती हैं। इस समय मालवा में संजा बनाकर उनकी पूजा की जाती है। उन्होंने कहा गोबर में एंटीसेप्टिक तत्व होते हैं। वर्षांत में हानिकारक कीट पैदा हो जाते हैं। ऐसे में गोबर से बनी संजा उन कीटाणुओं को नष्ट करने में सहायक होती है। वह गोबर नदी में प्रवाहित किया जाता है, जिससे नदी के दोनों किनारों की वनस्पति पोषित होती है। संजा सिर्फ एक परंपरा नहीं है। संजा के मांडनों तथा गीतों में महिलाओं के विवाहित जीवन से जुड़े कई जीवन सूत्र छिपे होते हैं, जिन्हें बचपन में ही कुंवारी कन्याओं के जीवन में संजा पर्व के दौरान समझने का मौका मिलता है। इसी को ध्यान में रख कर हम यह आयोजन करते हैं साथ ही संजा परंपरा का संरक्षण एवं इसके माध्यम से जनजागृति का प्रयास भी करते है। कार्यक्रम में पूजा नागर ( इंदौर,धार विभाग किशोरी विकास प्रमुख ) ने निवेदिता प्रकल्प के माध्यम से संजा निर्माण की कार्यशाला की जानकारी दी साथ ही बालिकाओं द्वारा औषधीय पौधों का रोपण परिसर में किया गया कार्यक्रम का संचालन प्राचार्य बीना राजवंशी ने किया आभार नित्या व्यास ने माना।


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