बाँका। बिहार का यह अति पिछड़ा जिला बाँका में खनिज सम्पदा तो प्रचुर मात्रा में है ही, यह नदियों और पहाड़ों की श्रृंखला से भी घिरी हुई है। यहां के लोग नदियों और झरनों की कल-कल ,छल-छल से आनंदित होते रहते हैं। बावजूद विकास की अंधी दौड़ में, राज्य सरकार सहित जिला प्रशासन के कायरानापन के कारण अब नदियों की सुन्दरता को भी ग्रहण लग गया है। नदियों से लगातार जारी बालू उठाव के कारण इसका स्वरूप तक विगाड़ कर रख दिया है।
खासकर सालों भर कल-कल छल-छल बहने वाली चांदन और ओढ़णी नदी की धारा भी अब बेमौसम ही सुख जा रही है। वहीं बदुआ, सुखनियाँ, गेरुआ, बिलासी, मिरचनी आदि नदियों का और बुरा हाल है। यह नदियाँ सिमटती जा रही है। और तो और बालू ठेकेदारों द्वारा नदी से बालू दोहन के दौरान निर्धारित किए गए मानकों से कई गुना अधिक खुदाई मशीनों द्वारा कर दी जा रही है,जो बरसात के मौसम में सिर्फ तबाही लाने का काम करती है। नदियों में बने गहरे गड्ढे में बरसात के पानी भर जाने से लोगों को गहराई का पता नहीं रहता है, खासकर बच्चे-बच्चियों को, और भूलवश जब वे उसमें नहाने जाते हैं तो कइयों को अपनी जान भी गवांनी पड़ती है। गत वर्ष भी लगभग दो दर्जन बच्चे-बच्चियाँ विभिन्न स्थानों पर नहाने के क्रम में मौत के गाल में समा गए थे।
सरकारी स्तर पर भी न कभी इसके स्वरूप बचाने की कोशिश होती है और न ही पर्यावरण को ठीक करने की जरूरत समझी जाती है। नदियाँ अब मरे पशुओं को फेकने का स्थान और कुड़ेदान बनकर रह गया है। अब तो सालों भर पानी रहने से भी इसके अधिकांश हिस्से मैदानी होने लगें हैं।
लगातार बालू उठाव के कारण नदियाँ बालू विहीन हो हो रही है और इसके नीचे से जमीन दिखने लगी है। कई अन्य स्थानों पर बहने वाली नदियों की छोटी-छोटी धाराएँ भी स्थानीय लोगों द्वारा मल-मूत्र त्यागने के कारण प्रदुषित कर दिया जा रहा है। जिसके कारण कभी नदियों से मिलने वाला मीठा पानी अब जहर बनने के कगार पर है। नाला व सीवर का पानी नदियों में ही गिराया जा रहा है। इस गंदे होते पानी के कारण मछलियों को भी अपनी जान गवांनी पड़ रही है। अब नदियों में मछली शायद ही देखने को मिलती है। इस पर सरकार को ध्यान देना होगा, नहीं तो पर्यावरण तो असंतुलन होगा ही किसानों को भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। * के पी चौहान, बाँका।

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