परिधि द्वारा दिवंगत डॉ प्रेम प्रभाकर की तीसरी बरसी पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन कला केंद्र में किया गया।
संचालन करते हुए संस्कृति कर्मी उदय ने कहा कि डॉ प्रेम प्रभाकर मूलतः कल्चरल एक्टिविस्ट थे और अध्यापन उनका पेशा। उनको मंजूषा चित्रकला के प्रथम चित्र विश्लेषक भी रहे। चित्रकार शेखर द्वारा "मंजूषा मोनोग्राफ" पुस्तक के निर्माण और प्रथम स्लाइड फिल्म के निर्माण में भी उनकी माहिती भूमिका थी । उनका मानना था कि जबतक साहित्य, संस्कृति आम लोगों के हाथ नहीं होगा तबतक कोई प्रगति वादी सांस्कृतिक आंदोलन नहीं हों सकता। वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता रामशरण ने उन्हें याद करते हुए कहा कि डॉ प्रेम प्रभाकर को हम इसलिए याद कर रहे हैं क्योंकि वे विश्वविद्यालय शिक्षक होने के बावजूद जीवन पर्यंत सामाजिक सांस्कृतिक कार्यकर्ता बने रहे। साहित्य और संस्कृति को वे व्यापक फलक पर ले जाना चाहते थे। वे साहित्य को आम लोगों के हाथ का औजार बनाना चाहते थे।
आकाशवाणी से जुड़े अरुण कुमार पासवान ने उन्हें याद करते हुए कहा कि उन दिनों भागलपुर रेडियो में वे माखन भाई के नाम से ग्राम जगत कार्यक्रम में आते थे. जब उनसे पूछा कि नाम माखन भाई ही क्यों? तब उन्होंने बताया कि वे मखना गाँव के हैं इसलिए अपना छद्म नाम माखन भाई रखा है।ये था उनकी अपने गांव के प्रति लगाव। उनकीपीएचडी शिष्या अमृता ने कहा कि जब मैं पीएचडी करने जा रही थी तो कुछ लोगों ने कहा था कि पीएचडी करने में चप्पल घिस जाता है पर उनके अंदर पीएचडी करने के दरम्यान उन्होंने हमें एक बेटी की तरह समझा और सहयोग किया। पारस कुंज ने डॉ प्रेम प्रभाकर को याद करते हुए कहा कि हम दोनों यहाँ के शुरुआती समय की
पत्रकारिता साझीदार थे। नई बात अख़बार में भी हम साथ थे और उसे निकालने, बढ़ाने में भी लग रहे। वे सहज व स्वभाविक बात करने वाले ब्यक्ति थे।
वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता प्रकाश चंद्र गुप्ता ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने अपना जीवन समाज को दिया। एकराम हुसैन साद ने अपनी नज्म द्वारा उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित किया। डॉ प्रकाश कुमार ने कहा कि सर हमेशा हमारे जेहन में रहेंगे। सर के साथ काम कर कभी नहीं लगा कि वे हमारे प्रोफेसर हैं हम छात्रों को लगता जैसे हमारे साथी हों। उनके जाने के बाद खालीपन ख़त्म नहीं हों सकता। उन्होंने ही हमें किसी पुस्तक का प्रूफ रीडिंग सिखलाया
डॉ श्रीकांत प्रसाद ने उन्हें याद करते हुए कहा कि हम उन्हें तब से जानते हैं जब से वे रेडियो में ग्राम जगत कार्यक्रम में माखन भाई बनकर आते थे। उनका अंगिका भाषा पर बहुत पकड़ थी और वे खांटी अंगिका शब्दों का प्रयोग करते थे। रंगकर्मी ललन ने कहा कि उनका परिवार छोटा मजदूर किसान था। वे उसी भाव में जीते और विश्वविद्यालय शिक्षक बन जाने के बाद भी उनके बारे में सोचते रहते। वे पूरी तरह से सांस्कृतिक ब्यक्ति थे। उनके दर्शन और सोच में भारतीय संस्कृति, किसान मजदूर, सामाजिक बदलाव था । उन्होंने जो पढ़ा, जो पढ़ाया उसमें बदलाव के सूत्र तलाशते रहे।
वे युवाओं को पकड़-पकड़ कर उसकी क्षमता तराशने, बढ़ाने का काम करते। उनकी पत्नी उर्वशी प्रभाकर ने बताया कि उन्होंने अब तक 13 लोगों को पीएचडी कराया। छात्र-छात्राओं के साथ उनका व्यवहार बहुत ही मित्रवत राहता। अक्सर उनके अंदर पीएचडी करने वाले छात्र-छात्रा देर तक काम करते और उनके ही घर खाना भी खाते। वे कहा करते थे कि विद्यार्थी के पास पैसा कहाँ है जो होटल में जाकर खाना खाएगा। श्रद्धांजलि सभा में रामशरण ,प्रकाश चंद्र गुप्ता, ऐनुल होदा, मृदुला सिंह, अरुण पासवान, तक़ी अहमद जावेद, उमा घोष, उदय, अर्जुन शर्मा, एकराम हुसैन शाद, सुनील रंग, प्रकाश कुमार, राकेश कुमार, शारदा श्रीवास्तव, ललन, देवशीष बनर्जी, पारस कुंज, शोभा श्रीवास्तव, डॉ चैतन्य प्रकाश,स्वेता भारती, प्रो नागेश्वर कुमार, राकेश कुमार, राहुल आदि ने भी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित किया ।


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