भारतीय सभ्यता व संस्कृति की परिचायक है हिंदी - प्रणव भारद्वाज
भागलपुर.हिंदी भाषा का नाम सुनते ही हम रोमांचित हो जाते हैं, हिंदी ने ही हमारी पहचान को दुनिया तक पहुंचाने में मदद की है। यद्यपि हिंदी आज भारत की राष्ट्रभाषा भले ही नहीं है लेकिन इसका संस्कार राष्ट्रीय जरूर है। यह भाषा भारतीय सभ्यता और संस्कृति की परिचायक है। हिंदी वास्तव में समग्र शिक्षा का एक आवश्यक अंग है, जिनसे हमारे चरित्र का निर्माण संभव है। देश के भावनाओं का दर्पण है हिंदी। यह भाषा लगातार मातृभाषा, राजभाषा, जनभाषा, संपर्क भाषा के सोपानों को पार कर विश्व भाषा बनने की ओर अग्रसर है। उन्होंने आम जनमानस से अपील करते हुए कहा कि आज संकल्प लें कि हम हिंदी के संवर्धन में अपना योगदान करेंगे। कुछ नहीं तो कम से कम हस्ताक्षर तो हिंदी में कर सकते है।इसकी आज से शुरुआत करें। वह दिन दूर नहीं जब हिंदी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मुस्कुराती नजर आएगी।


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