बिहुला और माता विषहरी की गाथा है पुरानी, जानिए इतिहास*
भागलपुर का प्रसिद्ध बाला- बिहुला-विषहरी का पूजा प्रारंभ हो गया. माँ को छोटी डलिया चढ़ने लगा है. यह पूजा पूरे अंग क्षेत्र में मनाया जाता है. लोगों की इसमें अपार श्रद्धा है. आपको बता दें कि इस पूजा का भागलपुर से खास नाता रहा है. ऐसा कहा जाता है कि बाला बिहुला पूजा का चंपा नगरी में उद्भव स्थल है. यहीं से इस पूजा की शुरुआत हुई है. ऐसा कहा जाता है कि माँ विषहरी को सती बिहुला के कारण ख्याति प्राप्त हुई है. जिसके कारण चंपा नगर में भव्य मंदिर व उनकी विशेष पूजा की जाती है. कहा जाता है कि भगवान शंकर की पुत्री विषहरी को ख्याति प्राप्त करने के लिए अपने पिता को बोली. तभी उनके पिता ने बताया कि अंग क्षेत्र चम्पानगर में मेरा एक भक्त चांदो सौदागर रहता है. अगर वो तुम्हारी पूजा करेगा तो तुम्हे ख्याति प्राप्त हो जाएगी. विषहरी ने सौदागर को अपनी पूजा करने के लिए कहा. लेकिन सौदागर ने पूजा करने से मना कर दिया. तभी माँ विषहरी क्रोधित हो गई और सौदागर के परिवार को मारने लगी. तभी सौदागर का सबसे छोटा पुत्र बाला लखेंद्र बचा. उनकी शादी तय हुई. इसको कोई क्षति न हो इसके लिए लोहे का घर बनवाया. घर में मिस्त्री से मात्र सुई भर का छिद्र रखवाया गया. ताकि उससे हवा प्रवेश करे. बाला लखेंद्र की शादी बिहुला से हुई.जिसके बाद दोनों बंद घर में सोए हुए थे. तभी विषहरी अंदर प्रवेश कर गई. लखेंद्र को एक मच्छर ने काटा जिसके बाद उसने अपने हाथ को फेंका और विषहरी को लगा गया जिसके बाद विषहरी ने लखेंद्र को काट लिया. जिसके बाद पत्नी बिहुला ने अपने पति को लेकर केले के थम्ब पर स्वर्ग यात्रा को निकल गई. स्वर्ग से अपने पति का प्राण लेकर वापस आ गई. तभी से अंग क्षेत्र में इसकी पूजा होने लगी।


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