अंग व सीमांचल में प्रतिवर्ष 17 अगस्त को मनाये जानेवाले बिहुला विषहरी पूजा को जिलेवासियों ने अटूट श्रद्धा व प्रेम से मनाया...
प्रत्येक वर्ष 17 अगस्त को मनाये जानेवाले इस पूजन को लेकर शहर में हर्षोल्लास एवं भक्तिमय माहौल बना हुआ है!
लॉकडौन कोरोना तथा बाढ़ की कहर के बावजूद विषहरी मंदिर में इस बार भी जोर-शोर भक्तों का तांता लगा रहा।
बताते चलें कि 17 अगस्त की मध्य रात्रि में जब सिंह नक्षत्र प्रवेश करता है, इससे पहले रात्रि में बाला नखेन्द्र की बारात निकाली जाती है।
तथा 18 अगस्त को हरेक साल लोग डलिया, दूध व लावा का भोग लगाते हैं।
एवं कहीं-कहीं मंजूषा का विसर्जन होता है.
भगत की पूजा समाप्त होती है। दोपहर में मनौन-भजन कार्यक्रम का आयोजन होता है!
उज्जेन नगरी की बिहुला का चम्पानगर के बाला लखेन्द्र के साथ हुई थी। जिसे सुहाग रात में ही सर्पदंश से हुई मौत के बाद सती बिहुला ने उनके शव को लेकर गंगा के मार्ग से यात्रा कर भगवान शिव की कृपा से उन्हें जीवित कराया था। तभी से इस परिक्षेत्र में बिहुला विषहरी की पूजा नाग पंचमी से शुरू होती है और लगातार एक माह तक चलती है। बाल्टी कारखाना चौक चंपा नाला पुल बुढ़ानाथ जोगशर कासिम भाई ईस्ट गोरा चौक अलीगंज नाथ नगर पर्वती इसाक चक भोलानाथ पुल इत्यादि बिसहरी स्थानों में पूजा अर्चना बड़े ही श्रद्धा पूर्वक तीनों दिन मां विषहरी की पूजा अर्चना की गई और तीसरे दिन कलश विसर्जन करके सती बिहुला और बाला की मूर्ति को विसर्जित भी किया गया कहा जाता है कि विषहरी पूजा में सती बिहुला अपने पति वाला को यमराज से के हाथों से बाला का प्राण वापस ले करके आई थी और बड़े ही श्रद्धा पूर्वक भागलपुर शहर में विषहरी पूजा मनाया जाता है.


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