पराली प्रबंधन से मिट्टी की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है।
जालंधर (विशाल ) धान की पराली का प्रबंधन न सिर्फ पराली जलाने की समस्या में अहम भूमिका निभा रहा है बल्कि पिछले कुछ सालों से खेतों में पराली का निपटारा करके किसान अधिक लाभ भी कमा रहे हैं। जिन किसानों ने खेतों में ही पराली का प्रबंधन किया, वहां खाद पर होने वाला खर्च कम कर पैसों की बचत करने के मामले भी सामने आए हैं। खेतों की मिट्टी की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है। गोल गांव के किसान अमरजीत सिंह ने बताया कि वह वर्ष 2012 से इन-सीटू तकनीक से पराली का प्रबंधन कर रहे हैं। मिट्टी की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है। उन्होंने कहा वह खेत में 50 प्रतिशत कम डीएपी और यूरिया का प्रयोग कर रहे हैं। वह सुपर एसएमएस का प्रयोग करते हैं जिसके बाद 38 एकड़ में जीरो ड्रिल के साथ गेहूं की बिजाई के लिए मल्चर और एमबी प्लो का प्रयोग किया जाएगा। अमरजीत ने बताया कि फसल की पैदावार में 1 से 1.5 क्विंटल प्रति एकड़ तक की बढ़ोतरी हुई है और बरसाती पानी ठहरने की कोई समस्या नहीं रही।गांव काला संघिया के किसान दविंदर सिंह धालीवाल वर्ष 2015 से धान की पराली का प्रबंधन मशीनों से कर रहे हैं और 50 एकड़ गेहूं और 60 एकड़ आलू की बिजाई कर रहे हैं। अनुभव साझा करते हुए दविंदर ने बताया कि उनके खेत की मिट्टी की उपजाऊ शक्ति में सुधार हुआ है। गेहूं की फसल के साथ-साथ आलू की पैदावार में भी काफी इजाफा हुआ है। खाद की लागत में भी कमी आई है।मुख्य कृषि अधिकारी डा. सुरिंदर सिंह ने कहा कि यदि सभी किसान जालंधर में इन तकनीकों को अपना लें, जोकि 4 लाख एकड़ क्षेत्रफल है, तो वह 80 करोड़ रुपये की बचत कर सकते हैं। ये पैसा वे पौष्टिक तत्वों जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाशियम की खरीद पर खर्च करते हैं।


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