धीरज गुप्ता की रिपोर्ट
गया
गया भारतवर्ष अनेक धर्मों और संस्कृतियों का अनोखा संगम रहा है एवं अनेकता में एकता हिन्दुस्तान की विशेषता रही है भारत देश यहां अनेक धर्मों के अपनेअलग,अलग पर्व-त्योहार हैं वह होली, दीवाली, दशहरा, ईद, क्रिसमस, आदि कोई भी त्योहार क्यों न हो, सबके मनाए जाने के पीछे एक ही उद्येश्य रहता है- *बुराइयों पर अच्छाई की विजय।* किसी भी पर्व के मनाए जाने का औचित्य तभी है जब आसुरिक प्रवृत्तियों पर मानवीय मूल्यों की विजय पताका लहराई जा सके,होली पर्व के मनाने के पीछे भी कमोबेश यही लक्ष्य है कि दुर्गुणों पर सद्गुणों के रंगों का चढ़ जाना ही तो होली है यह बातें होली पर्व के अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए सहायक प्रोफेसर बी डी इंभीइंनीग कोलेज, ने कहा कि हमारे समाज में अज्ञानतावश अनेक तरह के भेदभाव व्याप्त हैं कभी धर्म, तो कभी जातिवाद के आधार पर, कभी लिंग तो कभी आर्थिक स्थिति के आधार पर, कभी भाषा तो कभी राज्य के आधार पर, लोग एक दूसरे के प्रति घृणा और नफरत का भाव पालते रहते हैं भूल जाते हैं वे इस सत्य को कि सभी एक ही परमसत्ता के प्रतिबिम्ब हैं भूल जाते हैं सब लोग कि 'पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात। एक दिना छिप जाएगा,ज्यों तारा प्रभात। कोई नहीं जानता कि किसके जीवन की इहलीला कब समाप्त हो जाने वाली है, तब भी लोग पूरा जीवन एक-दूसरे के प्रति नकारात्मक विचार रखने के ही आदि दिखलाई देते हैं। मन में जमी ईर्ष्या-द्वेष, नफरत, भेदभाव, वैर आदि की जमी काई को धोने के लिए ही तो होली के रंगों की जरूरत होती है। हर रंग एक अद्भुत भावना का प्रतीक होता है। जिस तरह से सूर्य के सात रंग जब मिलकर एक हो जाते हैं तो हर दिशा में चमक उठती है, उसी तरह से जब जीवन में प्रेम, स्नेह, सम्मान, श्रद्धा, अपनत्व, विश्वास, सहयोग,आशा, नव उत्साह, उमंग जैसे रंगों की उपस्थिति होती है तो जीवन भी खुशियों के अनंत आलोक से भर उठता है जब हृदयों की पिचकारियाँ प्रेम और सद्भाव के रंग भर जाती हैं, तो पूरी दुनिया ही रंगीन हो उठती है। होली में यही तो होता है। इस दिन लोग आपसी मनमुटाव, गिले-शिकवे को भूलकर मिल-जुलकर नाचते हैं, झूमते हैं, गाते हैं, बजाते हैं, रंग-अबीर-गुलाल लगाते हैं। पूए-पूरियाँ, दही बड़े खाते हैं, खिलाते हैं। मौज-मस्ती के धुन में रम हर पीड़ा और गम को बिसरा जाते हैं। इस समय तो मनुष्य ही नहीं पूरी प्रकृति भी रंगों में सराबोर दिखती है शीत ऋतु का प्रकोप झेल रही बंजर-सी हो गयी धरती की हरीतिमा, नीलिमा, लालिमा सब अचानक जीवंत हो उठती है। पीली-पीली सरसों, लाल-लाल पलाश के पुष्प, खेत-खलिहानों में पेड़-पौधों पर प्रस्फुटित नवकोंपलों की हरी-भरी चादरें, 'होली आई, होली आई' का आभास दिला आत्मा के प्रसूनों को खिला जाती है अतः उचित है कि मनुष्य भी प्रकृति के उमंग भरे रंगों में डूब स्वयं के जीवन को भी रंगीन बना डाले। मन के सारे विकार धो जीवन का सुखसार पाले।"रंग-बिरंगी खुशियाँ लेकर आई होली आई रे!अच्छाई की जीत सदा हो हारे कुटिल बुराई रे!


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