*■ महिला दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य नारी को समाज में एक सम्मानित स्थान दिलाना और स्वयं में निहित शिक्तियों से उनका परिचय कराना है:-*सेवता सुमन* गया से धीरज गुप्ता की रिपोर्ट गया *महिला दिवस को लेकर सेवत सूमनसंदेश* भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है। संस्कृत में एक श्लोक है- श्यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवतारू। अर्थात जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। हम जानते है महिलाओं का समाज निर्माण में बहुत बड़ा योगदान होता है, महिलाओं को सशक्त व स्वाबलंबी बनाना हम सभी की जिम्मेदारी है। आज हम सभी देख रहे है, महिलाए आज हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर और स्वतंत्र बन रही है हमे यह स्वीकार करना होगा कि घर और समाज की बेहतरी के लिए पुरूष और महिला दोनोें समान रूप से योगदान करते हैं। हर महिला विशेष होती है चाहे व घर पर हो या कार्यालय में है आज महिलाएं अपने आस-पास की दुनियां में बदलाव ला रही है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि बच्चों की परवरिश और घर को घर बनाने में एक प्रमुख भूमिका भी निभाती है यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम उस महिला की सराहना करें और उनका सम्मान करे जो अपने जीवन में सफलता हासिल कर रही है। इस युग को नारी उत्थान का युग कहा जाय तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, आज हमारे देश भारत की महिलाएं हर क्षेत्र में अपना पताका फेहरा रही है, मौजूदा सरकारें भी महिलाओं को हर क्षेत्र में अपना भविष्य निर्माण करने का अवसर उपलब्ध करा रही हैं जो महिलाओं के विकास के लिए रामबाण साबित हो रहा है आज के वर्तमान में पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली नारी किसी पर भार नहीं बनती वरन अन्य साथियों को सहारा देकर प्रसन्न होती है, यदि हम सभी विदेशी भाषा एवं पोशाक को अपनाने में गर्व महसूस करते हैं तो क्या ऐसा नहीं हो सकता कि उनके व्यवहार में आने वाले सामाजिक न्याय की नीति को अपनाएं और कम से कम अपने घर में नारी की स्थिति सुविधाजनक एवं सम्मानजनक बनाने में भी पीछे ना रहे हैं! *अंत में आप सभी से यही आग्रह होगा कि हम अपने जीवन में महिलाओं का सम्मान करें। भुरण हत्या, महिला उत्तपीड़न, डायन प्रथा जैसे मानसिक कुरीतियों को समाज से पूर्ण रूप से खत्म करने में अपना हर संभव योगदान सुनिश्चित करें।* *● कैसे हुई महिला दिवस की शुरुआत* महिला दिवस की शुरुआत से पहले 19 वीं शताब्दी के मध्य में, जब 8 मार्च, 1857 को अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में कुछ महिला श्रमिकों के एक समूह ने काम की बेहतर स्थिति और अच्छे वेतन की मांग के साथ एक विरोध प्रदर्शन किया गया था उस वक्त पुलिस ने आक्रामक रूप से उस प्रदर्शन को कुचल दिया, लेकिन कई सालों के बाद दृढ़ निश्चय रखने वाली उन महिलाओं ने अपनी मजदूर यूनियन बनाई है, अपने महत्व और अधिकारों के लिए महिलाओं के उस निरंतर संघर्ष को याद करने के लिए साल 1911 में, 19 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (शIWD के रूप में मनाया गया है। हालांकि महिला दिवस की तारीख को साल 1921 में बदलकर 8 मार्च कर दिया गया। तब से यह उसी दिन मनाया जाता है।

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*■ महिला दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य नारी को समाज में एक सम्मानित स्थान दिलाना और स्वयं में निहित शिक्तियों से उनका परिचय कराना है:-*सेवता सुमन*

गया से धीरज गुप्ता की रिपोर्ट

गया *महिला दिवस को लेकर   सेवत सूमनसंदेश* भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है। संस्कृत में एक श्लोक है- श्यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवतारू। अर्थात जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। हम जानते है महिलाओं का समाज निर्माण में बहुत बड़ा योगदान होता है, महिलाओं को सशक्त व स्वाबलंबी बनाना हम सभी की जिम्मेदारी है। आज हम सभी देख रहे है, महिलाए आज हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर और स्वतंत्र बन रही है हमे यह स्वीकार करना होगा कि घर और समाज की बेहतरी के लिए पुरूष और महिला दोनोें समान रूप से योगदान करते हैं। हर महिला विशेष होती है चाहे व घर पर हो या कार्यालय में है आज महिलाएं अपने आस-पास की दुनियां में बदलाव ला रही है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि बच्चों की परवरिश और घर को घर बनाने में एक प्रमुख भूमिका भी निभाती है यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम उस महिला की सराहना करें और उनका सम्मान करे जो अपने जीवन में सफलता हासिल कर रही है।
इस युग को नारी उत्थान का युग कहा जाय तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, आज हमारे देश भारत की महिलाएं हर क्षेत्र में अपना पताका फेहरा रही है, मौजूदा सरकारें भी महिलाओं को हर क्षेत्र में अपना भविष्य निर्माण करने का अवसर उपलब्ध करा रही हैं जो महिलाओं के विकास के लिए रामबाण साबित हो रहा है आज के वर्तमान में पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली नारी किसी पर भार नहीं बनती वरन अन्य साथियों को सहारा देकर प्रसन्न होती है, यदि हम सभी विदेशी भाषा एवं पोशाक को अपनाने में गर्व महसूस करते हैं तो क्या ऐसा नहीं हो सकता कि उनके व्यवहार में आने वाले सामाजिक न्याय की नीति को अपनाएं और कम से कम अपने घर में नारी की स्थिति सुविधाजनक एवं सम्मानजनक बनाने में भी पीछे ना रहे हैं!
*अंत में आप सभी से यही आग्रह होगा कि हम अपने जीवन में महिलाओं का सम्मान करें। भुरण हत्या, महिला उत्तपीड़न, डायन प्रथा जैसे मानसिक कुरीतियों को समाज से पूर्ण रूप से खत्म करने में अपना हर संभव योगदान सुनिश्चित करें।*
*● कैसे हुई महिला दिवस की शुरुआत*
महिला दिवस की शुरुआत से पहले 19 वीं शताब्दी के मध्य में, जब 8 मार्च, 1857 को अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में कुछ महिला श्रमिकों के एक समूह ने काम की बेहतर स्थिति और अच्छे वेतन की मांग के साथ एक विरोध प्रदर्शन किया गया था उस वक्त पुलिस ने आक्रामक रूप से उस प्रदर्शन को कुचल दिया, लेकिन कई सालों के बाद दृढ़ निश्चय रखने वाली उन महिलाओं ने अपनी मजदूर यूनियन बनाई है, अपने महत्व और अधिकारों के लिए महिलाओं के उस निरंतर संघर्ष को याद करने के लिए साल 1911 में, 19 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (शIWD के रूप में मनाया गया है। हालांकि महिला दिवस की तारीख को साल 1921 में बदलकर 8 मार्च कर दिया गया। तब से यह उसी दिन मनाया जाता है।

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